Saturday, May 3, 2008

मन तो है बैतलवा!!

सच पूछिये तो मन इक बेताल है
कितनी बार हम सोंचेते हैं की ऐसा नहीं करना है ,ऐसा करना है उसके हिसाब से प्लानिंग करते हैं पर ऐसा हो पता हैं क्या शायद ऐसा नहीं हो पता है। पर कभी आप ने सोंचा है की ऐसा क्यों नहीं हो पता हैं ।
मन को कितना समझाओ बुझाओ पर समझाता कहाँ हैं ?
बुद्धी कहती है ऐसा करो, मन को समझती है बुझाती है ।
बुद्धी है राजा विक्रम व मन है बेताल ।
दोनों के बीच ज़ंग चलती रहती है ।
मन रुपी बेताल उड़ उड़ कर बरगद के पेड़ पर चला जाता है
और हम कह सकते है की फिर बैतलवा पेड़ पर !!!

1 comment:

ganand said...

आपने बिल्कुल सही वर्णन किया है मन का ...पर इस मन रुपी बैताल पे लगाम लगाना हिन् शायद जीवन है !!!

About Me

मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.