Sunday, May 4, 2008

पराये देश में ???

कुछ ताज्जुब नहीं हो रहा है आप को ये जान कर की मैं ये लिख रहा हूँ पराये देश में
अपने और पराये का भेद क्यों ? जहां भी रहो उस को ही अपना समझो
फिर भी हम क्यों अपना और पराये का भेद भाव करने लगेते हैं। इस के लिए मैं किसी व्यक्ति विशेष को दोष नहीं दूंगा क्यों की यह मानव की प्रवृति है जिस के साथ रहता है , जहां रहता है वहाँ के लोगों से , वहाँ की मिट्टी से खास लगाव तो हो ही जाता है। अगर आप को अपनी मिट्टी से , अपने देश के लोगों से नहीं लगाव है तो आप जरूर ही सामान्य मानव से अलग हैं। पर मुझे पता है की आप अपने इस बात का एहसाश किसी को नही होने देते हैं क्यों की मुझे समझ में आ गया हैं की आप इक बहुत बड़े राजनीतिज्ञ हैं । ये तो बहुत की गर्व की बात भी है।
आप का पहला एवं सर्वोपरी गुण होता है अपनी भावनाओं को छुपा कर रखना !

क्या आप ने कभी भी देखा आज के राज-नेताओं को अपनी मिट्टी से जुड़ते हुए
जब भी चुनाव का वक्त आता है वो अपने देश के, अपने राज्य के , अपने जिला के , अपने गावं के प्रतिनिधि बन जाते हैं। ऐसा लगता है की वो इसी मिट्टी के लिए जन्मे हैं और इस का विकास ही उन के जन्म का एक मात्र लक्ष्य है।
अपनी मंजिल को पाते ही वो भूल जाते हैं की उन्होंने पहले कुछ कहा था , कुछ सपने बुने थे लोगों के दिलों में।
फिर अगर बात करो तो बोलेंगे की मुझे तो सारे देश की चिंता है अगर मैं सिर्फ़ अपने प्रदेश के लोगों की बात सुनूंगा तो मुझे पे क्षेत्रीयता का आरोप लगेगा मैं तो देश और समाज से ऊपर उठ चुका हूँ और मैं अब विश्व कल्याण की बात सोचता हूँ । अगर मैं सम्पूर्ण मानव जाती के कल्याण मात्र में लग जाता हूँ तो आप लोगों का कल्याण ख़ुद व ख़ुद हो जाएगा आप चिंता न करें।
अगर आप के मन में भी ऐसी बातें हैं तो निकाल फेको क्षेत्रीय ही बन जाओ अपने ही लोगों का कल्याण करो बाकी लोगों का कल्याण ख़ुद व ख़ुद हो जाएगा॥ हाँ ये जरूर कहूँगा की अपनो का कलायन जरूर करना पर औरों का हक
मार कर नही।


मेरी सोंच ऐसी हैं की मैं इशारा करता हूँ बाकी आप समझदार हैं इनसां के लिए इशारा काफी है।

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About Me

मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.