SIMPLICITY
Sunday, June 12, 2011
नया लक्ष्य
रघु देर तक सोया रहता है। जागने के बाद , नहा धो कर माँ सरस्वती की आराधना करता है, तदोपरांत, अपने पडोसी मित्रों को बुलाता है।
आइये आइये सारे रमेश ज़ी , सुरेश ज़ी, टी.क ज़ी , पी के ज़ी , पप्पू ज़ी। अच्छा ये तो सिविल सर्विसेस का ग्रुप हो गया । अब ऑब्जेक्टिव एक्साम वाले ग्रुप आईये। अरे चुताकन-इंजीनियरिंग मेडिकल वाले तुम लोग भी आ जाओ।
अच्छा खासा जमावड़ा लग जाता है, रघु के कमरे में
सब पूछते हैं क्या हुआ रघु ज़ी
नौकरी , लग गयी या शादी पक्की हो गयी है
क्या हुआ है रघु ज़ी
"और भी हैं मंजिलें और भी हैं राहें , सितारों के आगे जहां और भी हैं। रघु ज़ी शायराना अंदाज में शुरू हो जाते हैं।
हम तो जहाँ भी रुकेंगे वो मिल का पत्थर बन जायेगा। भाई लोग अब हम ज्यादा भूमिका नहीं बनायेंगे। मैं नौकरी
और शादी से आगे निकल चुका हूँ। ये सारे नोट्स , किताबें आप के हैं । आप लोग ले जाइये।
अब सब और अपने विचारों के दीपक को जलाऊंगा।
खुद जल जल कर दुनिया को रोशन करूँगा।
हाँ दोस्तों , अब मेरा लक्ष्य हैं जीवन दर्शन करना और आप जैसे लोगों को जीवन-दर्शन करना ।
सही रह दिखाना।
Wednesday, June 8, 2011
कल और आज
मेरी बाँहों में समा जाती थी
आज मैं बांहे फैलाये खड़ा हूँ
अब तुम मेरी बाँहों में नहीं समा रही हो,
या तो मेरी बाहें छोटी हो गयी हैं
नहीं तो आप मोटी हो गयी हैं
आप तो मोटी हो नहीं सकती हैं
मैं सिर्फ छोटा हो गया हूँ
दिल की बात नहीं बताऊंगा
क्या सोंच रहा हूँ
हाँ दोस्तों को जरूर बताऊंगा
दोस्तों
शादी से पहले वो दिया सलाई की तिल्ली जैसी थी
अब वो दिया सलाई की डिबिया बन गयी हैं
तो बताओ कैसे समायेगी मेरी बाँहों में.
पर मैं तो उसको नहीं बता सकता हूँ
क्या ये बात तुम अपनी श्रीमती को बता पाओगे
अगर हाँ तो..
पुरी दिया सलाई की डिबिया की आग के लिए तैयार रहना
प्रेम का स्वरुप
जब तुम पहली बार मिली थी
मैं ही तुम था, तुम थी मैं.
अब तुम ही तुम हो और मैं भी हम तुम
कल तक था मैं प्राण प्यारा
तुम थी मेरी प्राण प्यारी
अब मैं हूँ बहुत बड़ा बेचारा
करता हूँ घर का काम सारा
कल तक तेरी आँखें ढूंढती थी मुझ को
अब भी ढूंढती तेरी आँखें , पर मुझे नहीं मेरे पर्श को
कल तक थी तेरी आँखों में चाँद की रोशनी
अब लेकर बैठी हो अपनी आँखों में सूरज की रोशनी
तभी तो सर छुपाये बैठा हूँ
मरने के baad
चील कुत्तों को खिलाओगे ,जलाओगे, जमीन के नीचे दफ़न कर दोगे या पानी के प्रवाह में फेक दोगे.
मुझे उसकी चिंता नहीं हैं
मैं अभी जिन्दा हूँ.
मुझे भर पेट भोजन चाहिए
चाहो तो मेरे आँखों को मरने के बाद दान कर देना..
पर मुझे अभी अँधा न बनाओ..
दुनिया देखने दो, सही गलत का निर्णय करने दो
मेरे पेट में कुछ नहीं छुपा है भूखा हूँ मैं
अगर मेरे पास तुम्हारी तरह बहुत कुछ होता
तो स्विस बैंक में मेरा भी अकाउंट होता..
कल मैं ने यही तो कहा था
थोड़े से पैसे स्विस बैंक से ले आओ
मेरी भूख मिट जायेगी
तुम ने क्या किया.
रात में आये बहुत मारा पिटा
दुर्बल हूँ हाय लगेगी मेरी
और तुम्हारा हाड मांस गल जायेगा
और चील कौवा बन कर आऊंगा
और तुम्हारा सदा गला मांस खाऊंगा
और प्रयावरण को सुद्ध करूंगा
दिग्विजय सिंह -आधुनिक भारत के जयचंद
Sunday, April 10, 2011
bhrstachar
कौन नहीं है इस जहां में भ्रष्ट
भ्रष्ट आचार तो भारत के जन-जन में समावेशित है
आज जो सब खड़े हैं भ्रस्टाचार के विरुद्ध में
उस में से जयादातर भ्रष्ट है
नेता को आसमान से नहीं टपक पड़ता है वो हमारे बीच का हीं एक समांन्य मानव होता है
जो की भ्रस्टाचार के बीच जन्म लेता है पलता है फलता है फूलता है तो वो भी भ्रस्टाचारी बन जाता है
क्या हम ने अपने अन्दर झांक कर देखा है हम कितने ईमानदार हैं और कितने चोर है हमारे अन्दर ईमानदारी का प्रतिसत क्या है और बेईमानी का प्रतिसत क्या है
जब एक बालक घर में जन्म लेता है तोसब कुछ वो घर से हीं तो सीखता हैं
अछे आचार-विचार या भ्रस्टाचार
एक बाबु का बेटा देखता है की उस के घर में सारी सामग्री उपलब्ध है जबकी उस के पिता की इतने समर्थ तो नहीं हैं तो वो चोरी करना हीं सीखेगा ना या वो ईमानदारी सीखेगा ...
आज का युवा जो IAS बन ता उस में कितने देश भक्ति की बात सोंचते हैं और कितने अपने घर को भरने की बात सोचते है। कितने डॉक्टर ग्रामीण इलाके में जाकर सेवा करना सोचते है। शायद १ प्रतिसत या उस से भी
अभी तो जन-मानस में अलख जगाने की जरूरत है ॥ चोरी करना बंद करो।
About Me
- Mukul
- मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.