Wednesday, June 8, 2011

प्रेम का स्वरुप

बदल गया है स्वरुप प्रेम गीत का
जब तुम पहली बार मिली थी
मैं ही तुम था, तुम थी मैं.
अब तुम ही तुम हो और मैं भी हम तुम
कल तक था मैं प्राण प्यारा
तुम थी मेरी प्राण प्यारी
अब मैं हूँ बहुत बड़ा बेचारा
करता हूँ घर का काम सारा
कल तक तेरी आँखें ढूंढती थी मुझ को
अब भी ढूंढती तेरी आँखें , पर मुझे नहीं मेरे पर्श को
कल तक थी तेरी आँखों में चाँद की रोशनी
अब लेकर बैठी हो अपनी आँखों में सूरज की रोशनी
तभी तो सर छुपाये बैठा हूँ

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About Me

मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.