स्टेशन से लौटे रघु की आँखों में एक नया आत्मविश्वास है। मंजिल उसे पता है। साध्य का पता है। साधन की तलाश है। उसकी आँखों में नयी चमक है, वही चमक जो जंग जीत कर लौटे सिपाही की आँखों में होता है, पैरों में बचपन की चंचलता , आवाज में अनुभव का पुट है। उसके पडोसी दोस्त आश्चर्यचकित है। ये हरा हुआ सिपाही उदास क्यों नहीं है, या तो ये पगला गया है नहीं तो इसे परम ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है।
रघु देर तक सोया रहता है। जागने के बाद , नहा धो कर माँ सरस्वती की आराधना करता है, तदोपरांत, अपने पडोसी मित्रों को बुलाता है।
आइये आइये सारे रमेश ज़ी , सुरेश ज़ी, टी.क ज़ी , पी के ज़ी , पप्पू ज़ी। अच्छा ये तो सिविल सर्विसेस का ग्रुप हो गया । अब ऑब्जेक्टिव एक्साम वाले ग्रुप आईये। अरे चुताकन-इंजीनियरिंग मेडिकल वाले तुम लोग भी आ जाओ।
अच्छा खासा जमावड़ा लग जाता है, रघु के कमरे में
सब पूछते हैं क्या हुआ रघु ज़ी
नौकरी , लग गयी या शादी पक्की हो गयी है
क्या हुआ है रघु ज़ी
"और भी हैं मंजिलें और भी हैं राहें , सितारों के आगे जहां और भी हैं। रघु ज़ी शायराना अंदाज में शुरू हो जाते हैं।
हम तो जहाँ भी रुकेंगे वो मिल का पत्थर बन जायेगा। भाई लोग अब हम ज्यादा भूमिका नहीं बनायेंगे। मैं नौकरी
और शादी से आगे निकल चुका हूँ। ये सारे नोट्स , किताबें आप के हैं । आप लोग ले जाइये।
अब सब और अपने विचारों के दीपक को जलाऊंगा।
खुद जल जल कर दुनिया को रोशन करूँगा।
हाँ दोस्तों , अब मेरा लक्ष्य हैं जीवन दर्शन करना और आप जैसे लोगों को जीवन-दर्शन करना ।
सही रह दिखाना।
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About Me
- Mukul
- मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.
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