हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते-खाक हैं फानी , रहे रहे न रहे
एक सपने को टालते रहने से क्या होता है ?
क्या वह सुख जाता है
किशमिश सा धुप में ?
या जख्म सा पक जाता हैं
और फिर रिसा करता हैं ?
मुमकिन है वह सिर्फ लच जाता हो
भारी बोझे जैसा
कहीं वह बारूद -सा फट तो नहीं पड़ता ?
Friday, December 18, 2009
Sunday, November 15, 2009
अँधेरा नहीं प्रतीक है शैतानी ताकत का॥
अँधेरा प्रतीक है वर्षों से कमजोर बेसहारा वर्गों का
जिसकी प्रस्तुती ग़लत ढंग से की गयी हैं।
अगर अँधेरा न होता तो
क्या आप आराम से सो पाते
अँधेरा तो सर्वहारा वर्ग का प्रतीक हैं
आप अमीर हैं गरीब हैं वो सब को इक नजर से देखता है
आप वस्त्रो से लिपटे हैं या नंगे हैं सब पर उस की सामान दृष्टि हैं
आप नंगे हैं तो वो आप की इज्जत का ख्याल करता हैं
वर्षो से सब ने चिथडा चिथडा किया , उसकी बाहें काती उसके प्रशस्त सीने को चीर चीर कर रख दिया
फिर भी वो खामोश बैठा है, चुपचाप बैठा है
आप की सुख सुविधा के लिए॥
अँधेरा कभी भी उजालें पर आक्रमण नही करता है
वो शांत प्रवृति का वयक्ति है पर उस को जीने कौन देता है
रात लहूलुहान बैठा है चुचाप हर कोई आक्रमण कर रहा है
मत मारो अंधेरे को छोड़ दो उस को
वो अनादी काल से पीटता आ रहा hai
अँधेरा प्रतीक है वर्षों से कमजोर बेसहारा वर्गों का
जिसकी प्रस्तुती ग़लत ढंग से की गयी हैं।
अगर अँधेरा न होता तो
क्या आप आराम से सो पाते
अँधेरा तो सर्वहारा वर्ग का प्रतीक हैं
आप अमीर हैं गरीब हैं वो सब को इक नजर से देखता है
आप वस्त्रो से लिपटे हैं या नंगे हैं सब पर उस की सामान दृष्टि हैं
आप नंगे हैं तो वो आप की इज्जत का ख्याल करता हैं
वर्षो से सब ने चिथडा चिथडा किया , उसकी बाहें काती उसके प्रशस्त सीने को चीर चीर कर रख दिया
फिर भी वो खामोश बैठा है, चुपचाप बैठा है
आप की सुख सुविधा के लिए॥
अँधेरा कभी भी उजालें पर आक्रमण नही करता है
वो शांत प्रवृति का वयक्ति है पर उस को जीने कौन देता है
रात लहूलुहान बैठा है चुचाप हर कोई आक्रमण कर रहा है
मत मारो अंधेरे को छोड़ दो उस को
वो अनादी काल से पीटता आ रहा hai
Tuesday, October 6, 2009
वक्त
वक्त हाथों से रेत की तरह फिसलता जा रहा हैं।
कोई तो मुझे बताये हाथ से जो रेत फिसल रहा है उसको कैसे रोकें
आदत सी हो गयी हैं हवा में किला बना ने की
और उस किला को मैं ख़ुद भी नही देख पता हूँ
कोई तो मुझे बताये हाथ से जो रेत फिसल रहा है उसको कैसे रोकें
आदत सी हो गयी हैं हवा में किला बना ने की
और उस किला को मैं ख़ुद भी नही देख पता हूँ
समस्या
बड़ी बड़ी बातें करने में बहुत आनंद की अनुभूति होती हैं। इस की तुलना आप पुराने ज़माने के शाश्त्राथ से कर सकते हैं।
हम सभी लोग वातानुकूलित कक्ष में बैठ कर ऊँची ऊँची बातें करते हैं। देश के लिए, समाज के लिए. विश्व के लिए।
पर हम से कितने लोग हैं जो मूलभूत समस्या के समाधान के लिए जमीनी पहल करते हैं। बहुत ही कम लोग ऐसा करते हैं।
जो लोग बड़ी बड़ी बातें करते हैं उन में से कितने लोगों ने भारत वर्ष की आत्मा से ख़ुद को जोड़ कर देखा हैं।
कितने लोगों ने दूर दराज के गावों को पास जा कर निहारा हैं। उन की समस्या को बखूबी समझा हैं.
हम सभी लोग वातानुकूलित कक्ष में बैठ कर ऊँची ऊँची बातें करते हैं। देश के लिए, समाज के लिए. विश्व के लिए।
पर हम से कितने लोग हैं जो मूलभूत समस्या के समाधान के लिए जमीनी पहल करते हैं। बहुत ही कम लोग ऐसा करते हैं।
जो लोग बड़ी बड़ी बातें करते हैं उन में से कितने लोगों ने भारत वर्ष की आत्मा से ख़ुद को जोड़ कर देखा हैं।
कितने लोगों ने दूर दराज के गावों को पास जा कर निहारा हैं। उन की समस्या को बखूबी समझा हैं.
Sunday, September 20, 2009
भारत
अपने भारत वर्ष को इंडिया से बचाओ । भारत को इंडिया से खतरा हो गया है। अपने देश का नाम अपने देश की भाषा में लो। हमारे आप के जैसे लोग अपने देश को भारत नहीं बोलते हैं , इंडिया बोलते हैं। मुझे तो अस्तित्व का खतरा नजर आता है।
कई बार तो ऐसा भी होता हैं। मेरे दोस्तों ने बोला है की मुझे हिन्दी में लिखी बातें पढ़ने में दिक्कत होती है। इस में उनकी गलती नही हैं। गलती है तो हमारी मनो-दसा की है गुरुता का आवरण के लिए हम अंग्रेजी का सहारा लेते जा रहे हैं.
कई बार तो ऐसा भी होता हैं। मेरे दोस्तों ने बोला है की मुझे हिन्दी में लिखी बातें पढ़ने में दिक्कत होती है। इस में उनकी गलती नही हैं। गलती है तो हमारी मनो-दसा की है गुरुता का आवरण के लिए हम अंग्रेजी का सहारा लेते जा रहे हैं.
Sunday, May 10, 2009
कुछ यूँ हीं
प्रभु से पिरितिया लग जावे रे लग जावे रे
प्रभु से पिरितिया .....
सब दुःख दूर हो जावे रे...
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
मनवा बैकुंठ बस जावे रे
जो प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
सब तीरथ के दर्शन हो जावे रे
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
अपना -पराया का बंधन टूट जावे रे
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
गुन अवगुण यश -अपयश से दूर हो जावे रे
ओ मनवा तू भव सागर पार हो जावे रे॥
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे....
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे...
प्रभु से पिरितिया .....
सब दुःख दूर हो जावे रे...
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
मनवा बैकुंठ बस जावे रे
जो प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
सब तीरथ के दर्शन हो जावे रे
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
अपना -पराया का बंधन टूट जावे रे
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे
गुन अवगुण यश -अपयश से दूर हो जावे रे
ओ मनवा तू भव सागर पार हो जावे रे॥
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे....
जब प्रभु से पिरितिया लग जावे रे...
Tuesday, April 28, 2009
How important??
What is important?
To be a
Need to understand and learn tolerance to become a good family member. You must know, what to talk , how to talk and when to talk?
Sometimes you utter few words, which you don't mean. It sabotages your relationship. Have you ever realized the same?
Disturbance at home, turbulence at home, tumults time at home project a gloomy and obscure picture of relationship in nascent mind.
A lot of things, you learn in your childhood.
Have you ever realized that young children at street , in the very tender age, they know that how cruel world is? They have got head of an old man on their juvenile shoulder ?
If you have witnessed tumults relationship of your parents in your childhood and have not got proper attention from parents.
It may lead to an aberration in your behavior. It may make you
Till now, talk is only limited to family.
Let us talk about how to become a sensible citizen.
Do we understand what is integrity honesty kindness,
how do we want to project our country on the canvas of world? What we want to return to human kind in return ?
If we can answer these questions, for sure we are on right path to become a good citizen?
Do good and be good for the country for the fraternity . That's all
The utmost importance is to understand the significance of energy savings.
Our ancestors did understand the importance of energy and they always try to save energy.
That's why they used to worship SUN, the only one source of energy.
Let us save energy for your predecessors !!!
Let us save energy for better tomorrow !!!
Let us save energy to save earth !!!
Let us save energy to avoid living on the edge..
Let us save energy to make your Earth green !!!!
Green earth will become red if you don't save energy...
To be a
- a good family member
- a sensible citizen of India
- a good human being
Need to understand and learn tolerance to become a good family member. You must know, what to talk , how to talk and when to talk?
Sometimes you utter few words, which you don't mean. It sabotages your relationship. Have you ever realized the same?
Disturbance at home, turbulence at home, tumults time at home project a gloomy and obscure picture of relationship in nascent mind.
A lot of things, you learn in your childhood.
- How to respect your elder?
- Winning spirit
- Environment consciousness
- Hospitality
- Empathy
Have you ever realized that young children at street , in the very tender age, they know that how cruel world is? They have got head of an old man on their juvenile shoulder ?
If you have witnessed tumults relationship of your parents in your childhood and have not got proper attention from parents.
It may lead to an aberration in your behavior. It may make you
- a rebellious child
- an unstable man
- you may want to keep yourself away from parents
- You may find difficult to differentiate between what is good and what is bad?
Till now, talk is only limited to family.
Let us talk about how to become a sensible citizen.
Do we understand what is integrity honesty kindness,
how do we want to project our country on the canvas of world? What we want to return to human kind in return ?
If we can answer these questions, for sure we are on right path to become a good citizen?
Do good and be good for the country for the fraternity . That's all
The utmost importance is to understand the significance of energy savings.
Our ancestors did understand the importance of energy and they always try to save energy.
That's why they used to worship SUN, the only one source of energy.
Let us save energy for your predecessors !!!
Let us save energy for better tomorrow !!!
Let us save energy to save earth !!!
Let us save energy to avoid living on the edge..
Let us save energy to make your Earth green !!!!
Green earth will become red if you don't save energy...
Sunday, April 12, 2009
उन के दरबार में
मैं अक्सर लोगों से सुनता रहता हूँ की मानव के अच्छे बुरे कर्मों का फैसला उन के दरबार में होता है, हर किसी को अपने कर्मो के अनुसार फल मिलता हैं इस लोक में नहीं तो पर-लोक में , रोचक एवं रोमांचकारी लगती हैं मुझे ये बातें।
लोग कह रहें हैं तो सत्य ही होगा मैं कौन होता हूँ इस पर सवालिया निशान उठाने वाला। मैं तो इक अदना सा इंसान हूँ जो इस मृत्युलोक लोक में आया हूँ और चला जाऊंगा जो कार्य मेरे लिए नियत किए गए हैं उनको करना होगा और चला जाऊंगा॥
मैं ये सोंच रहा था हमारे यहाँ कोर्ट-कचहरी में वेटिंग लिस्ट इतनी लम्बी होती हैं । कई बार ऐसा होता हैं की कोर्ट में फैसला भी नही होता हैं , लोगों स्वर्ग भी चले जाते हैं ।
जब यहाँ इतनी लम्बी line लगी हैं तो प्रभु के दरबार में किस तरह manage होता होगा उन की कार्य प्रणाली कैसी होगी वो कैसे manage करते होंगे । क्या सब को इतनी लम्बी line में justice मिल पता होगा।
क्या वहाँ छोटे जज नही होते होंगे क्या वहाँ witness को नहीं ख़रीदा जाता होगा।
मुझे नही पता हैं । तो जो parlok हैं अगर वहां सभी निर्णय सही होता हैं तो भगवन को अपने ढेर सारे represnentatives को भेज देना होगा । ख़ास कर भारत में कई हजार , मुझे तो लगता हैं यहाँ represntatives तो ढेर सारे हैं पर या तो वो लोग बदल गएँ नहीं तो we असुरों के representatives हैं।
इक mechanism और भी हैं येहाँ से ढेर लोग इश्वार के दरबार में जाएँ और वहां की न्याय प्रणाली भी समझ कर आयेंगे ॥
आप को पता हैं iskaa सब से बड़ा phayada क्या होगा आप anumaan लगा sakete हैं क्या मुझे लगता हैं कर लेंगे।
ये साधुओं का धंधा बंद हो जाएगा जो कहेते हैं मुझे इश्वर का पता हैं क्यों की फिर तो हमारे पास भी practical expereience वाला बंद होगा॥
आप के और हमारे बीच कोई आम नर /नारी ..
लोग कह रहें हैं तो सत्य ही होगा मैं कौन होता हूँ इस पर सवालिया निशान उठाने वाला। मैं तो इक अदना सा इंसान हूँ जो इस मृत्युलोक लोक में आया हूँ और चला जाऊंगा जो कार्य मेरे लिए नियत किए गए हैं उनको करना होगा और चला जाऊंगा॥
मैं ये सोंच रहा था हमारे यहाँ कोर्ट-कचहरी में वेटिंग लिस्ट इतनी लम्बी होती हैं । कई बार ऐसा होता हैं की कोर्ट में फैसला भी नही होता हैं , लोगों स्वर्ग भी चले जाते हैं ।
जब यहाँ इतनी लम्बी line लगी हैं तो प्रभु के दरबार में किस तरह manage होता होगा उन की कार्य प्रणाली कैसी होगी वो कैसे manage करते होंगे । क्या सब को इतनी लम्बी line में justice मिल पता होगा।
क्या वहाँ छोटे जज नही होते होंगे क्या वहाँ witness को नहीं ख़रीदा जाता होगा।
मुझे नही पता हैं । तो जो parlok हैं अगर वहां सभी निर्णय सही होता हैं तो भगवन को अपने ढेर सारे represnentatives को भेज देना होगा । ख़ास कर भारत में कई हजार , मुझे तो लगता हैं यहाँ represntatives तो ढेर सारे हैं पर या तो वो लोग बदल गएँ नहीं तो we असुरों के representatives हैं।
इक mechanism और भी हैं येहाँ से ढेर लोग इश्वार के दरबार में जाएँ और वहां की न्याय प्रणाली भी समझ कर आयेंगे ॥
आप को पता हैं iskaa सब से बड़ा phayada क्या होगा आप anumaan लगा sakete हैं क्या मुझे लगता हैं कर लेंगे।
ये साधुओं का धंधा बंद हो जाएगा जो कहेते हैं मुझे इश्वर का पता हैं क्यों की फिर तो हमारे पास भी practical expereience वाला बंद होगा॥
आप के और हमारे बीच कोई आम नर /नारी ..
Friday, March 20, 2009
तुम संग संग जो चले
तुम संग संग जो चले
फूलों का शहर हैं
तेरी यादों का डगर हैं
तुम संग संग जो चले
फिजा में तेरी खुशबू हैं
दिन तेरी ही रुत में ढले
तुम संग संग जो चले
चाँद धीरे धीरे चले
फागुनी बयार कुछ अनकही कहे
चैता चित्त करे चंचल
तुम संग संग जो चले
फूलों का शहर हैं
तेरी यादों का डगर हैं
तुम संग संग जो चले
फिजा में तेरी खुशबू हैं
दिन तेरी ही रुत में ढले
तुम संग संग जो चले
चाँद धीरे धीरे चले
फागुनी बयार कुछ अनकही कहे
चैता चित्त करे चंचल
तुम संग संग जो चले
Wednesday, February 18, 2009
न वसंत है न वासंती हवा है न तुम हो ॥
न वसंत है न वासंती हवा है न तुम हो ॥
धरती सजी है संवरी है पीली अलसी खिली है ॥
सब की आंखों में खुमार है , ढेर सरे सतरंगे सपने भी हैं ..
हवा धीरे धीरे छू रही हैं ..
सरे लक्षण वसंत के हैं
पर ना जाने क्यों मुझे लगता है
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
ऐसा नहीं की तुम नहीं हो यहाँ
तुम येही कही बैठी हो अपना सुब कुछ लेकर ॥
और अपना सुब कुछ किसी को उधार दे कर ...
यहाँ तुम्हारा तन बैठा हैं ..
मन कही और उदास बैठा ...
तभी तो
न वसंत है न वासंती हवा है न तुम हो ॥
मेरे कई सतरंगे सपने हैं ..
पैर इनका क्या करून ...
मेरे सपने आम्र के बोरों की खुसबू लिए बैठे ..
महुआ के पेड़ के आस -पास भटक रही ॥
उसे लगता है तुम्हारा मन येही कहीं छुपा है।
मेरे सरे सतरंगी सपने उदास हैं ...
मेरे लिए ॥
इन वासंती हवाओं में ... ना वसंत का अल्हड़पन है ना पागलपन है ....
तो क्या करून ...
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
मैं दूर पहाड़ की चोटी पर बैठा ..
सबकी बातों को पर विचार कर रहा हूँ
ऊँची चोटी पे बैठा हूँ तो सब बौने लग रहे हैं ..
सब पयार में छोटे हो गए हैं खो गए हैं ...
मैं पहाड़ की चोटी पे बैठा गुरुता की भावना लिए हूँ ...
तो कैसे आयेगी वासन्ती हवा मेरे पास
फिर भी मैं कहता हूँ
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
धरती सजी है संवरी है पीली अलसी खिली है ॥
सब की आंखों में खुमार है , ढेर सरे सतरंगे सपने भी हैं ..
हवा धीरे धीरे छू रही हैं ..
सरे लक्षण वसंत के हैं
पर ना जाने क्यों मुझे लगता है
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
ऐसा नहीं की तुम नहीं हो यहाँ
तुम येही कही बैठी हो अपना सुब कुछ लेकर ॥
और अपना सुब कुछ किसी को उधार दे कर ...
यहाँ तुम्हारा तन बैठा हैं ..
मन कही और उदास बैठा ...
तभी तो
न वसंत है न वासंती हवा है न तुम हो ॥
मेरे कई सतरंगे सपने हैं ..
पैर इनका क्या करून ...
मेरे सपने आम्र के बोरों की खुसबू लिए बैठे ..
महुआ के पेड़ के आस -पास भटक रही ॥
उसे लगता है तुम्हारा मन येही कहीं छुपा है।
मेरे सरे सतरंगी सपने उदास हैं ...
मेरे लिए ॥
इन वासंती हवाओं में ... ना वसंत का अल्हड़पन है ना पागलपन है ....
तो क्या करून ...
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
मैं दूर पहाड़ की चोटी पर बैठा ..
सबकी बातों को पर विचार कर रहा हूँ
ऊँची चोटी पे बैठा हूँ तो सब बौने लग रहे हैं ..
सब पयार में छोटे हो गए हैं खो गए हैं ...
मैं पहाड़ की चोटी पे बैठा गुरुता की भावना लिए हूँ ...
तो कैसे आयेगी वासन्ती हवा मेरे पास
फिर भी मैं कहता हूँ
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
Thursday, January 1, 2009
मृत्यु का गीत
आओ
इस नव वर्ष की शुभ वेला पर,
सब मिल कर मृत्यु का गीत गायें
नवजीवन का अलख जगाएं
अँधियारा ही सूरज को लेकर आता है
अम्बर पर ज्ञान प्रकाश फैलाता है
डरो मत आज इस नव वर्ष रुपी यज्ञ की वेदी पे ,
दे दो आहुति सारे कुविचारों की
असत अनैतिक के मृत्यु का गीत
खोले द्वार ,सदगुण के , नया विहान का , नया सूरज का
तो आओ आज हम साब मिलकर मृत्यु का गीत गायें
इस नव वर्ष की शुभ वेला पर,
सब मिल कर मृत्यु का गीत गायें
नवजीवन का अलख जगाएं
अँधियारा ही सूरज को लेकर आता है
अम्बर पर ज्ञान प्रकाश फैलाता है
डरो मत आज इस नव वर्ष रुपी यज्ञ की वेदी पे ,
दे दो आहुति सारे कुविचारों की
असत अनैतिक के मृत्यु का गीत
खोले द्वार ,सदगुण के , नया विहान का , नया सूरज का
तो आओ आज हम साब मिलकर मृत्यु का गीत गायें
मुझे समय बना दो
मुझे समय बना दो
मैं सिर्फ़ यही चाहता हूँ
इस नव वर्ष पर॥
मैं चलता रहूँगा
तुम सभी लोगों से आग्रह होगा
समय की शिला पर कुछ न कुछ लिखते रहना
मैं इक मूक दर्शक बन कर तुम्हारे कृत्यों की गवाही दूँगा॥
बस मुझे समय बना दो
मैं दीनता दैन्यता से परे रहूँगा । सुख दुःख माया मोह से परे रहे रहूँगा॥
ये सब कुछ आप की निरंतरता में बाधक हो जाती हैं॥
मेरा लक्ष्य तो समय बनना हैं
ईश्वर आप से मेरी यही प्रार्थना हैं मुझे समय बना दो
मैं खुद व् खुद अर्वाचीन हो जाऊंगा...
मैं सिर्फ़ यही चाहता हूँ
इस नव वर्ष पर॥
मैं चलता रहूँगा
तुम सभी लोगों से आग्रह होगा
समय की शिला पर कुछ न कुछ लिखते रहना
मैं इक मूक दर्शक बन कर तुम्हारे कृत्यों की गवाही दूँगा॥
बस मुझे समय बना दो
मैं दीनता दैन्यता से परे रहूँगा । सुख दुःख माया मोह से परे रहे रहूँगा॥
ये सब कुछ आप की निरंतरता में बाधक हो जाती हैं॥
मेरा लक्ष्य तो समय बनना हैं
ईश्वर आप से मेरी यही प्रार्थना हैं मुझे समय बना दो
मैं खुद व् खुद अर्वाचीन हो जाऊंगा...
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About Me
- Mukul
- मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.