Wednesday, February 18, 2009

न वसंत है न वासंती हवा है न तुम हो ॥

न वसंत है न वासंती हवा है न तुम हो ॥
धरती सजी है संवरी है पीली अलसी खिली है ॥
सब की आंखों में खुमार है , ढेर सरे सतरंगे सपने भी हैं ..
हवा धीरे धीरे छू रही हैं ..
सरे लक्षण वसंत के हैं
पर ना जाने क्यों मुझे लगता है
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...
ऐसा नहीं की तुम नहीं हो यहाँ
तुम येही कही बैठी हो अपना सुब कुछ लेकर ॥
और अपना सुब कुछ किसी को उधार दे कर ...
यहाँ तुम्हारा तन बैठा हैं ..
मन कही और उदास बैठा ...
तभी तो
वसंत है वासंती हवा है तुम हो

मेरे कई सतरंगे सपने हैं ..
पैर इनका क्या करून ...
मेरे सपने आम्र के बोरों की खुसबू लिए बैठे ..
महुआ के पेड़ के आस -पास भटक रही ॥

उसे लगता है तुम्हारा मन येही कहीं छुपा है।
मेरे सरे सतरंगी सपने उदास हैं ...

मेरे लिए ॥
इन वासंती हवाओं में ... ना वसंत का अल्हड़पन है ना पागलपन है ....
तो क्या करून ...
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...

मैं दूर पहाड़ की चोटी पर बैठा ..
सबकी बातों को पर विचार कर रहा हूँ

ऊँची चोटी पे बैठा हूँ तो सब बौने लग रहे हैं ..

सब पयार में छोटे हो गए हैं खो गए हैं ...
मैं पहाड़ की चोटी पे बैठा गुरुता की भावना लिए हूँ ...
तो कैसे आयेगी वासन्ती हवा मेरे पास
फिर भी मैं कहता हूँ
ना वसंत है ना वासंती हवा है ना तुम हो ...

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About Me

मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.