Friday, November 19, 2010

समय की आँखे

मैं अँधा हूँ.
कोई मुझे अपनी आँखे दे दो.
पर तुम्हारी आँखें लेने से पहले जानना चाहूँगा
क्या तुम्हारी आँखें रोगमुक्त हैं
रोगी आँखें मैं नहीं लूँगा उधार..
चलो तुम्हारे आँखों का परिक्षण करवाता हूँ
कुछ नमूना प्रश्न तुम्हारी आँखों के लिए.
क्या तुम्हारी आँखें , तुम्हारे माता पिता के आँखों के दर्द को देख पाती हैं
क्या तुम्हारी आँखें कभी नम होती हैं , क्या इन दृग कोरों से कुछ बहता हैं

क्या तुम्हारी आँखें , उदास आँखों को पढ़ पाती हैं
करोड़ों जन मानस के दर्द को देख पाती हैं
क्या असमय बड़े हो रहे बच्चों को पहचान पाती हैं
उनकी उबलती आँखों में आक्रोश देख पाती हैं
अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए चीखती चिल्लाती धरा को पहचान पाती है
उत्तर सिर्फ हाँ या न में चाहिए
जायदा वक़्त जाया नहीं करूंगा

मैं समय हूँ मैं अपनी आँखे खो चूका हूँ
मुझे अनंत काल तक चलना हैं
जल्दी बताओ
फिर ये न कहना की समय समय की बात है
अँधा समय अंधे की तरह व्यहार करेगा?

Wednesday, September 22, 2010

आओ हम सब मिल कर देश का नाम बढ़ाएं।

आओ हम सब मिल कर देश का नाम बढ़ाएं।
राष्ट्रमंडल खेल में आवारा कुतों की अगवानी कर आयें ।
आओ हम सब...
देखो हम कितने बड़े पशु प्रेमी हैं की हम ने कुत्तों के लिए घर बन वाएं हैं।
उन को खेल गाँव के कमरों में रजाई पर सुला आयें हैं।
करोड़ों रुपयों से बने स्टेडियम में कुते खेल दिखायेंगे
इस तरह हम अपने देश का नाम ऊँचा कर पाएंगे ।
ये दुनिया में अपने तरह का अजूबा होगा
जब आवारा कुतों को करोडो रुपयों से बने Sतेदियम में अपनी प्रतिभा दिखाते नजर आयेंगे
नए नए कीर्तिमान स्थापित होंगे
और अपने देश का नाम पशु प्रेमियों में अग्रगण्य हो जायेगा
क्या क्या नहीं किया है हम ने
ढेर सरे फ्लाई ओवर बनवाएं हम ने
बाँट बाँट कर पैसे घर लाये हम ने
भाई चारा का सन्देश फैलाया हम ने
तो देशवासियों अब मौका हाँथ से जाने न दो
थोड़े से पुल और गिरवा दो
कुछ बेरोजगार लोगों स्वर्ग का रास्ता दिखा दो
कुछ बेरोजगआरों को काम पे लगा दो
इस तरह बेरोजगारी भी घटा दो॥
आओ देश का नाम ऊँचा कर दो

About Me

मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.