Tuesday, October 6, 2009

वक्त

वक्त हाथों से रेत की तरह फिसलता जा रहा हैं।
कोई तो मुझे बताये हाथ से जो रेत फिसल रहा है उसको कैसे रोकें
आदत सी हो गयी हैं हवा में किला बना ने की
और उस किला को मैं ख़ुद भी नही देख पता हूँ

समस्या

बड़ी बड़ी बातें करने में बहुत आनंद की अनुभूति होती हैं। इस की तुलना आप पुराने ज़माने के शाश्त्राथ से कर सकते हैं।
हम सभी लोग वातानुकूलित कक्ष में बैठ कर ऊँची ऊँची बातें करते हैं। देश के लिए, समाज के लिए. विश्व के लिए।
पर हम से कितने लोग हैं जो मूलभूत समस्या के समाधान के लिए जमीनी पहल करते हैं। बहुत ही कम लोग ऐसा करते हैं।
जो लोग बड़ी बड़ी बातें करते हैं उन में से कितने लोगों ने भारत वर्ष की आत्मा से ख़ुद को जोड़ कर देखा हैं।
कितने लोगों ने दूर दराज के गावों को पास जा कर निहारा हैं। उन की समस्या को बखूबी समझा हैं.

About Me

मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सोचता बहुत हूँ पर करता कुछ भी नहीं हूँ. इस से अच्छा मेरा परिचय कुछ भी नहीं हो सकता है मैं खयालों की दुनिया में जीने वाला इन्सान हूँ . सच्चाई के पास रह कर भी दूर रहने की कोशिश करता हूँ अगर सच्चाई के पास रहूँगा तो शायद चैन से नहीं रह पाउँगा पर हर घड़ी सत्य की तलाश भी करता रहता हूँ . शायद आप को मेरी बातें विरोधाभाषी लग रही होगी पर सच्चाई यही हैं.. ये बात सिर्फ मुझ पर हीं नहीं लागू होती है शायद हम में से ज्यादातर लोगों पर लागू होती है. मैं तो गांव में पला -बढा ,शहर की बारीकियों से अनजान इक गंवई इन्सान हूँ जिसे ज्यादातर शहर के तौर तरीके पता नहीं हैं.